माँ की विनती ( पिकॉक हरा रंग)
माँ की विनती ( पिकॉक हरा रंग)
कह रही ये धरती माँ
कर कर के चीत्कार,
मत करो तबाह मुझे
मैं तुम्हारी माँ हूँ ,
देती हूँ अन्न जल तुमको
रहने का आश्रय मेरे ही गोद में,
फिर क्यों मेरे गहरे हरे रंग पर
तुमको हुआ एतराज़ है,
कभी खून की खेल होली
मेरी झोली लाल कर देते ,
तुम्हें नहीं भाता है मेरा गहरा हरा रंग
जो उसे उजाड़ रहे हो ?
बना रहे मंजिल दर मंज़िल
महल अटारी चीर कर मेरा सीना ,
हो रहा दर्द तेरी माँ को बच्चों
ये बात तुम कब समझोगे ?
करती है हर माँ बर्दाश्त
अपने संतान की ग़लतियाँ,
पर ऐसा वक्त ना आने देना
जब मैं उठा लूँ अपने लिए कवच,
फिर तुम सब हो जाओगे तबाह
विनती है हाथ जोड़ मेरी तुमसे ,
सँभल जाओ मेरे बच्चों
मेरे गहरे हरे रंग पर बुलडोज़र ना चलवाओ।
