बुराई का अंत ( ग्रे रंग)
बुराई का अंत ( ग्रे रंग)
ये ग्रे रंग का जब हो जाता तेरा चरित्र
सामने वाला समझ ना पाता कैसा है मन तेरा,
कभी अच्छा बन कर मन मोह लेते हैं
कभी क्रोध में रंग में भंग कर देते हैं,
जब अंतर्मन हो जाता है काला तेरा
तब अंत समय बस आता है तेरा ,
करने बुराई का अंत सामने आती उसकी मौत
क्रोध की ज्वाला में जला कर कर देती संहार,
जल कर तड़पता पड़ा रहता तन मन तेरा
जल जल कर हो जाता स्याह रंग तेरा !!
