नारी
नारी
जो जीवन का आधार है
जिसके बिना यह जग निराधार है
प्रेम में बने हो राधा रानी
क्रोध में आए तो बनी मां काली
करती सभी समस्याओं का निदान है
घर चलाने में वह बेमिसाल बेमिसाल है
देने पर आए तो करदे तन मन न्योछावर
लेने पर आए तो जग भी कंगाल है
कोमल है इतनी कि लोग उपमा दे गुलाब की
कठोर हो इतनी कि बनी मंथरा दासी
प्रेम मे विह्वल वह बसंत बहार है
क्रोध में घनघोर वर्षा प्रमाण है
ईश्वर की शक्ति का वो आधार है
जिसके चरणो मे नत मस्तक संसार है
कभी बना के देवी सबने आरती उतारी है
कभी निलाम कर चैराहे पे इज्जत भी उतारी है
ना कोई समझा है ना कोई समझ सकेगा
भला ममता का का ऋण कोई कैसे ही भरेगा
ये स्त्री है सिर्फ शब्दो मे नही नजरो मे भी सम्मान चाहती है
बराबरी का हक नही मागंती बस स्वाभिमान से जीना चाहती है।
