नारी सशक्तीकरण-समाज का वातावरण
नारी सशक्तीकरण-समाज का वातावरण
नारी का व्यावहारिक रूप में हो सशक्तीकरण,
समाज का तो तब ही बदल पाएगा वातावरण ,
न बदले बातों या नारों से बदलेगा संस्कारों से
मात्र बोलें नहीं दिखाएं, व्यवहार और आचरण,
समाज का तो तब ही बदल पाएगा वातावरण।
बीत अरसा गया सशक्तीकरण की बातें सुनते-सुनते
त्याग करते-करते हैं थक चुकीं अनगिनत ही शबरियां ,
इन्तजार करते पथ के अनेकानेक शूलो को चुनते-चुनते
कब आएगा वो दिन जब , बदलेगा सच में अंत:करण ?
समाज का तो तब ही बदल पाएगा वातावरण।
सहृदयता के संग ही सरलता , उसकी आदतों में सदा ही हैं मिलते,
कंटकाकीर्ण पथ भले रहे उसका ,प्रयासों से हर पथ पर फूल खिलते,
बाधाएं उसके पथ में आती हैं अनेक,पर स्वभाव उसका रहता है नेक,
लाख सहती है वह अभाव,पर न बदलती स्वभाव,बदलता न आचरण,तो
समाज का तो तब ही बदल पाएगा वातावरण।
सदा नारी बिन इस जगत में, हर नर है रहता सदा ही अधूरा,
मात्र शक्ति मिलन के बाद ही तो ,अर्धनारीश्वर शिव होता पूरा,
शक्ति बिना शव ही शिव है,नारी के बिना सकल जग है अधूरा,
नारी और नर के मिलन के संग ही ये अधूरापन हो पाएगा पूरण,
समाज का तो तब ही बदल पाएगा वातावरण।
सुता और पिता , माता व सुत,भ्रातृ- भगिनी के अनमोल नाते,
अपने रिश्ते सभी याद रखते,गैर संग जब मिलते तो भूल जाते,
चाहे जो हो कहीं -टुकड़ा है जिगर का,चाह जो है हमें,देनी है वहीं,
व्यवहार हमको भी वही है मिलने वाला,हम निभाएंगे जो आचरण,
समाज का तो तब ही बदल पाएगा वातावरण।
जैसे को जब मिलेगा वैसा ही , समाज की हालत तब ही सुधर पाएगी,
ज्ञान शक्ति से परिपूर्ण होकर , अन्याय न सहकर सबक जब सिखाएगी,
नारी - नारी की न शत्रु रहेगी , अन्याय न सहेगी न सहना ही सिखाएगी,
साकार अवधारणा नारी सशक्तीकरण की होगी,और होगा समाजीकरण,
समाज का तो तब ही बदल पाएगा वातावरण।