नारी की विवशता
नारी की विवशता
नारी हूँ नादान नहीं बेटी हूँ बेकार नहीं,
कैसे तुमने यह है माना मेरा कोई मान नहीं।
माँ हूँ बहन, बेटी हूँ दुर्गा, काली भी मैं ही हूँ,
जितनी दया भरी दिल में है उतनी नफरत पाई है।
जितना क्षमा किया है हमने उतना ही अपमान सहा,
जितना प्यार किया है हमने उतना ही धिक्कार मिला।
माँ की लाज, पापा की इज्जत, भाई का रुतबा, दादा की शान,
इनके नीचे झुकना हैं हम बेटियों का इतना ही काम।
पति की इज्जत, ससुराल की लाज, गाँव का नाम, बेटे की शान,
इनके नीचे घुटना हैं दर्द में भी हमें हँसना हैं।
पड़ोसियों की नज़रें अपनों की बातें धोखे फरेब अपमान की बातें,
हम बेटियों की ये सौगातें फीके दिन और काली रातें।
जहाँ भी जाए छलना ही हैं बेटी होना क्या इतना बुरा हैं ?
कितने बार तोड़े गये कितने बार हम बिखड़े हैं।
कितनो के हाथों लुटे हैं कितनो के हाथों हम टूटे हैं,
हर बार यही हम सुनते हैं,
बेटी हो सहना ही होगा घर की लाज बचाना होगा।
किससे पुछू कैसे सहना कैसे जीना कैसे मरना,
अब न हमको हैं ये सहना हमको भी हैं हँसते जीना।
अपनी पहचान बनानी हैं खुद की लाज बचानी हैं,
अपने अन्दर हौसला भरके अपनी रक्षा खुद करना हैं।
घर के अन्दर कैद होकर अब ना हमको जीना हैं,
अपनी काली रातों को जुगनू से रौशन करना हैं।
हम इतने कमजोर नहीं हैं तूफानों से यूं डर जाए,
जब हम श्रृष्टि की रचना कर सकते बाकी और हमें क्या कहना ह
