नारी का दर्द
नारी का दर्द
साँसे अटक रही है
मन अशांत है
हजारों तारे
बाँध कर चल रही है
बोरसे की आग की तरह
आँसू नहीं गिरा पा रही
मुँह उसकी ढंकी है
बाहर निकलने से ही डर
मान- इज़्ज़त जाने का डर
सबसे ज्यादा डर तो उसे
घर में ही मिला है
उसकी सोलह साल
होने से पहले ही
लोगों की आलोचना का डर
समाज की नियम - नीति को
देखकर डर
जिसे एक दल लोभी
पुरुषों ने बनाया है
डर और डर
जन्म लेने के पहले से डर
डर से कमर टूट जाएगी तुम्हारी
वह फिर भी
कठोर सख़्त खड़ी है
खिली फूल के जैसी
हँसती हुई
बोलते है मर्यादा में रहो
समाज की सुनो
प्यार न करो
नहीं तो मरना होगा तुम्हें
केवल आँखें बंद कर
सहन करो
याद रखो हमेशा
तुम एक नारी हो
सर उठाने की चेष्टा न करो
आज़ादी की अभिलाषा भी
मन में नहीं लाओ
आसमान में
उड़ने का सपना
तुम्हारा नहीं है
याद रखो हमेशा
तुम एक नारी हो
समाज की ऊँची कुर्सी पर
जो बैठे है
बनकर ठेकेदार
शांति से तुम्हें नहीं रहने देंगे
लाल खून पी जायेंगे
कच्चा माँस नोच कर
खायेंगे
और अंत में कहेंगे
याद रखो
तुम एक नारी हो