नारी हूँ मैं
नारी हूँ मैं


शिव की शक्ति
उनकी ही भक्ति
प्रकृति का प्रारूप हूँ मैं,
नारी हूँ मैं !
अन्तस में समेटे हुए
भावनाओं का अथाह समुद्र
स्व- सम्बन्धों को
प्रेम-निर्झरिणी से स्निग्ध
करती हूँ मैं,
नारी हूँ मैं !
व्रतोत्सव और
समारोहों की
प्राण हूँ मैं,
नारी हूँ मैं !
प्रत्येक सामाजिक
सम्बन्धों का
आधार हूँ मैं,
नारी हूँ मैं !
आधुनिकता की ओर
कदम बढ़ाती
साथ ही अपनी
सभ्यता व संस्कृति को
सहेजती हूँ मैं,
नारी हूँ मैं !
वासना के हृदयाघात से
टूटकर बिखरती परन्तु
वात्सल्य भाव से स्वयं को
दृढ़ता से खड़ी करती हूँ मैं,
नारी हूँ मैं !
स्वरक्त से सृजित
राष्ट्र के कर्णधारों में
संस्कार का आरोपण कर
सँवारती हूँ मैं,
नारी हूँ मैं !