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UPASANA PANDEY

Abstract

5.0  

UPASANA PANDEY

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गुरु-कृपा

गुरु-कृपा

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सत्य से परे मानव रहता

सदैव माया में निर्लिप्त ,

अतीत से न ले संज्ञान

जीवनपर्यन्त रहता संतप्त।


विषयों के रंगों में भ्रमित

मूल उज्ज्वलता से परे ,

माया मोह के पाश में बँध

स्वानन्द स्वरूप को खोजे।


अशांत हो अज्ञानमय मार्गों को

अपनाकर कष्टों में घिरता जाता।

अंततः सतगुरु की कृपा पाकर

प्रभु राधेकृष्ण की अनन्य शरण पाता।


अब वह अंतहीन दुखों से दूर

आनंदमय सागर में गोते खाता।

निर्मल,निःस्पृह, निर्गुण भक्ति में चूर

अनन्य भाव को प्राप्त कर जाता।



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