आज की नारी
आज की नारी

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सुन री सखी ! मेरी बतियाँ ,
नारी गुणों से महकी गलियाँ।
नारी है अब सबला ,
नहीं रही वह अबला।
अज्ञानता का अंधकार मिटा,
जीवन में शिक्षा-दीप जला।
नारी दायरा अपना बढ़ा रही,
घर और बाहर वह सम्भाल रही,
सन्तानों में संस्कार भी डाल रही।
स्व-कर्त्तव्यों से यह विमुख नहीं ,
पर अपना अधिकार माँग रही ।
अत्याचार और अब सहना नहीं,
किसी से दबकर इसे रहना नहीं।
कोई ऐसा कार्यक्षेत्र नहीं ,
जहाँ इसका प्रवेश नहीं।
धरती से अन्तरिक्ष तलक,
नारी-शक्ति ही रही झलक।
शिक्षा का जब फैलेगा प्रकाश,
सखी री !हम छू लेंगे आकाश।