मैं एक नारी हूं
मैं एक नारी हूं


इमन्तिहा देकर भी घर के दहलीज से बाहर आना चाहती हूँ
उस आज़ाद पंछी की तरह गगन को छूना चाहती हूँ
क़फ़स में क़ैद हूँ वर्षों से, मगर ! आज़ाद होना चाहती हूँ
तोड़कर पाँव की बेड़ियों को, पाज़ेब पहनना चाहती हूँ
मैं नारी हूँ, कोई अभिशाप नहीं, ये दुनिया को बताना चाहती हूँ
कहीं दूर दुनिया के दस्तूर से, अब मैं जीना चाहती हूँ
हर मोड़ पर है बाधा, बाधा के हर बंधन को तोड़ना चाहती हूँ
सपनों में लगाकर पँख, मैं गगन में उड़ना चाहती हूँ
बेटियाँ नहीं होती हैं बोझ, ये दुनिया से कहना चाहती हूँ
प्रकृति रूप नारी हूँ मैं, ये दुनिया को बताना चाहती हूँ।
Dr Gopal Sahu