नारी-एक बदलाव का प्रतीक
नारी-एक बदलाव का प्रतीक
सपने तो देखे थे मैंने भी कहीं सारे,
लेकिन आज कहीं सवाल लिए बैठी हूं
एक जमाने में यह समाज जोधाबाई,
रानी लक्ष्मीबाई, सत्यवती
आदि स्त्रियों की प्रशंसा किया करता था
और आज यही जमाना नारियों को
एक खिलौना समझ बैठा है,
क्या यह वही जमाना है?
यूं तो नारियों को दुर्गा सरस्वती
अन्नपूर्णा का रूप माना जाता है,
कहां जाता है नारी तू नारायणी
और आज यही जमाना बात-बात पर नारियों को
बतलाने लग गया उसकी सीमाएं
क्या यह वही जमाना है ?
यूं तो एक जमाने में योद्धाओं की
पहचान स्त्रियों से की जाती थी,
जैसे गंगापुत्र भीष्मा, कुंती पुत्र
अर्जुन, देवकी नंदन श्री कृष्ण
और आज स्त्रियों की पहेचान
उसके पिता और पति से हो गई,
क्या यह वही जमाना है ?
यूं तो देश को आजाद हुए ७३ साल पूरे हो गए
देखते ही देखते देश ने हर क्षेत्र में तरक्की कर ली,
क्या यह वही आजादी है जिसने नारियों को
असमानता के चुंगल में जकड़ लिया
क्या सच में देश आजाद हो गया,
क्या वाकई में जमाना बदल गया ?
नारियों की ओर से मैं पूछती हूं
यह सवाल जमाने से
यूं तो हर रंग में ढल जाती हूं मैं,
फिर भी क्यों अंधकार में रह जाती हूं मैं
डर लगता है मुझे यह जमाने से यदि उनकी सोच से
आगे बढ़ गई, क्या फिर से काटी जाऊंगी मैं ?
मत घोट मेरी आजादी का गला ए समाज,
जितना घोटेगा उतनी ही निखरती चली जाऊंगी मैं
आज की नारी सब पर भारी,
यही बात सिद्ध कर बताऊंगी मैं
सपने सारे पूरे में कर जाऊंगी,
औरों की आंखों में जिज्ञासा ही भरजाऊँगी
चिड़िया की तरह उड़ती ही चली जाऊंगी,
एक दिन देश के चमकने का कारण मैं
अवश्य बन जाऊंगी।