नाँव
नाँव
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इस नाँव की कहानी बड़ी निराली
सुबह बन जाती यह मुसाफ़िरों की सीट
रात में हो जाती यह अकेली
बड़े आते बच्चों को साथ लाते
बन जाता यह कहानियों का वो पल
जिस में बुनते सभी अपनी धून
संगीत बजता किनारे पे
उसकी गूंज सुन पाते पानी की लहर में
दिन की धूप जब बनती शाम का अंधेरा
लगता यही बिस्तर बिछाकर सो जाए हम
पर हम तो मुसाफ़िर है
फिर चल पड़े अपने रास्ते
नाँव फिर लग जाती किनारे
अगले दिन नया मुसाफ़िर नयी कहानी
बनाते नाँव को निराली।