नादान
नादान


ये पहली दफा है,
जब मैं भूलना चाहता हूँ
उस नादान को
यह कई दफा हुआ
वो याद रहा है मुझे
मेरी गुस्ताख़ मुहब्बत
वो कभी समझा ही नहीं
मेरे अख़लाक़
मेरे हबीबों को
कभी रास न आ सके
शायद इसीलिए
वो ताउम्र नादानी
बेफ़िक्री और फ़िराक़ दिली में
अपने को तबाह करते रहे...