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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy

न कर फिक्र जमाने में

न कर फिक्र जमाने में

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उनकी क्या फिक्र करना है, इस ज़माने में

जिनकी इज्ज़त नही है, दिल के तहखाने में

जो यकीन रखते है, यहां व्यर्थ के दिखावे में

उन्हें दूर ही रख तू अपने जिंदगी के गाने में


खुद को न बदल तू जिंदगी के तेरे मायने में

खुद के हिसाब से जी, न पी तू मयखाने में

सबका काम है, कहना, न आ तू बहकावे में

न बिक कभी तू खुद की नजर के आईने में


संसारी रोगों की दवा, भीतर के दवाखाने में

उनकी क्या फिक्र करना है, इस ज़माने में

जो बेच देते है, अपने ईमान को दो आने में

स्व रख रिश्ता न गम होगा, रिश्ता निभाने में


सरलता न बता लूटेंगे लोग, तेरे तानेबाने में

न वक्त कभी जाया कर, यहां तू सुस्ताने में

मंजिल न मिलेगी तुझे, अपने ही ज़माने में

न करना यकीं कभी तू, यहां हंसी तराने पे


लोगो ने छिपाये, खंजर अपने ही घराने में

उनकी क्या फिक्र करना है, इस ज़माने में

जो बिन बात रूठ जाते, जिंदगी किराने में

वक्त न लगता लोगो को बुराई कमाने में


पूरी जिंदगी लगती है, सच साथ निभाने में

तू न रखना सदा सच्ची हंसी, मुस्कुराने में

जान जाये तो न डर, सत्यदीप जलाने में

हौंसला कम न होने देना हृदय खजाने में


खुद भरोसा रख, न हो गुरुर किसी बहाने में

उनकी क्या फिक्र करना है, इस ज़माने में

जो साथ रह लगे है, तुझे ठिकाने लगाने में

मिटा वे शूल, जो लगे मासूम फूल दबाने में।


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