मूल्यांकन।
मूल्यांकन।
क्यों करता दूसरों से तुलना, अपना मूल्यांकन करके तो देख।
गुण-विशेषता अपनी नहीं देखी, पर्दा अहं का तो तू फेंक।।
पहचान नहीं तुझ को सत संगत की, संगति अच्छी करके तो देख।
ठीक मूल्यांकन तभी बन सकेगा, सत्संग में जाकर माथा टेक।।
श्रेष्ठ की श्रेणी औरों को देकर, अपने को तुच्छ करके तो देख।
अंतर मूल्यांकन अपना कर ले, नेकी कर दरिया में फेंक।।
समर्थ की शरण में जाकर, तू अपनी वास्तविकता को देख।
निज शिक्षा तेरी काम न आएगी अंधकार के बादल तो छेंक।।
अपने मन में जरा झांक ले, परमात्मा का अंश तू देख।
ईश्वर तत्व तुझ में ही रमता, स्वयं उसको खोज कर तो देख।।
घी छिपा है जैसे दूध में, अपने हृदय में उसको भी देख।
अंतरात्मा में दर्शन होंगे, शाश्वत रूपी गुरु को तो देख।।
नमन करेगा हर मनुष्य को, सब की सूरत में प्रभु को देख।
"नीरज" गुरु की शरण पकड़ ले, पर्दा दृष्टि का तो फेंक।।
