मुस्कुराहट
मुस्कुराहट
आंखों में अपनी गहरा सागर समेटे
अनकहे अनगिनत राज सिमटाती है।
पूछूं जो कुछ, बात को टालकर
शाम गहराने का बहाना बनाती है।।
बात बे बात मुस्कुराती है।
जाने क्या क्या छुपाती है।।
ना जाने कितने जख्म हैं सीने में
फिर भी हँसकर समय बिताती है।
उलझी सी सिलवटें बिखरी पड़ी हैं
उस गिरह से आजाद होना चाहती है।।
बात बे बात मुस्कुराती है।
जाने क्या क्या छुपाती है।।
वर्षा की बूदों में आँसू समाहित कर
किनारों को लहरों का रूख समझाती है।
जिन लहरों का करती है डट कर सामना
उन्हीं लहरों के संग सफर कर आती है।।
बात बे बात मुस्कुराती है।
जाने क्या क्या छुपाती है।।