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SHAKTI RAO MANI

Abstract

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SHAKTI RAO MANI

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मुशायरे में शे ' र अर्ज करो

मुशायरे में शे ' र अर्ज करो

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एक लौ अगर बुझ रही है तो जलानी क्यों है

उजाला है चारों और तो लौ दिखानी क्यों है


शौक से लटकाते हैं निंबू मिर्च बाजारों में जिस भूमि के

वहां महल अच्छा लगेगा उजाड़ दो फसल बचानी क्यों है


हाथों में लेकर घूमता हूं अब उन पोधों को कहीं जमीं मिले

सिर्फ़ और सिर्फ़ कटे मिले ये जमीं निशानी क्योंं है


सब ढोंग है सबको अपनी फिक्र है मानते हैं

जता ना अब की फ़िक्र है आख़िर ये मेहरबानी क्योंं है


पागल ‌कहता कहता मर गया बंजर भूमि नहीं इंसान हैं

मौत पर उसकी जंगल रोया था ये बात समझानी क्यों हैं


पेड़ ने खुदखुशी‌ कर ली‌ पेड़ ‌पर लटक कर

मेरी‌ साँसे लेकर‌ मुझे ही‌ काटते ऐसी कुर्बानी क्यों हैं


‘राव’ सबको‌ पता है ये बाते बतानी‌ क्यों है

मुशायरे में ‘शे’र अर्ज करो व्यर्थ कहानी क्यों है।


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