STORYMIRROR

Mahendra Kumar Pradhan

Drama

4  

Mahendra Kumar Pradhan

Drama

मुक्ति

मुक्ति

1 min
23.2K

एक अलग एहसास है

कैदियों को हमेशा

इसी की लगती प्यास है


जो बंद हैं पिंजरों में

उन परिंदों से पूछो

क्यों लुभाता आकाश है ?


मुक्तिमें,

एक अलग सी मिठास है

चेहरे में दमकता सदा

स्फूर्ति की आभास है


बेड़ियों से मुक्त बन्दों से पूछो

मुक्ति में कैसा मिठास और

कैसा एहसास है ?


मुक्ति में,

सुनील नभ के धूसर बादल

मुक्त हवा में डोले बिंदास

आजादी से जीते हैं


खुली समां में मदमस्त परिंदे

भरते उड़ाने, झुमके,

जीने की कला सिखाते हैं


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama