मुक्ति
मुक्ति
एक अलग एहसास है
कैदियों को हमेशा
इसी की लगती प्यास है
जो बंद हैं पिंजरों में
उन परिंदों से पूछो
क्यों लुभाता आकाश है ?
मुक्तिमें,
एक अलग सी मिठास है
चेहरे में दमकता सदा
स्फूर्ति की आभास है
बेड़ियों से मुक्त बन्दों से पूछो
मुक्ति में कैसा मिठास और
कैसा एहसास है ?
मुक्ति में,
सुनील नभ के धूसर बादल
मुक्त हवा में डोले बिंदास
आजादी से जीते हैं
खुली समां में मदमस्त परिंदे
भरते उड़ाने, झुमके,
जीने की कला सिखाते हैं
