मुकम्मल दास्तां
मुकम्मल दास्तां
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अक्सर फिसल जाता है दिल, देखकर चेहरे कई
पर तलाश तो है उसकी, जिस पर दिल अटक जाए।
अटके तो इस कदर अटके, ना हो कोई तलाश,
कि फिर कभी ना भटके, ना करे किसी की आस।
यूं तो भा जाते है आँखों को, चेहरे कई सारे अक्सर
आँखें देख भूल जाती, दिल नहीं लगता है पर।
मिल जाए किसी से नादां दिल, बस इतनी ही ख्वाहिश है,
हो कभी न दूर मुझसे, रहे नज़र और दिल के पास।
इश्क़ हो अब ऐसा किसी से, जिससे रहे बस वास्ता
लिख दे हम दोनों मिल के, प्यार की एक दास्तां।