झुमको से प्रेम
झुमको से प्रेम
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प्रेम को जिससे प्रेम रहे
उससे कैसे प्रेम ना हो
इसलिए मुझको झुमको से
प्रेम होने लगा है ।
ईर्ष्या होती है कभी कभी
प्रेम जो इनसे है तुमको
ढूंढती हो जो तुम इनको
स्पर्श ये करते हैं तुम को
लगता है मुझको के काश
मैं भी एक झुमका होता
तुम्हारे प्यारे गहनों में
मैं भी एक गहना होता ।
पर अच्छा है इंसान ही हूँ
तुम्हारा कोई झुमका नहीं
झुमके होते हैं कई सारे
और मैं हूं एक ही
देख नहीं सकता झुमका
ना ही प्रेम वो कर सकता
उसके लिए तुम्हारा मोह
अनुभव नहीं वो कर सकता
प्रेमी हो कर मैं तुम्हारा
तुम्हें मैं भी देख सकता हूँ
झुमके, चूड़ी, काजल, बिंदी
सब कुछ मैं ला सकता हूं ।