मुखौटा
मुखौटा
चेहरे पर चेहरा लगा कर
ज़ोर से हंस देती है वो
ऊंचे कहकहों से
मां बाप को खुश कर देती है वो
उस से खुशहाल कोई नहीं
ये सबको यकीन दिला देती है वो
और फिर जलती है उस मुखौटे के पीछे
और अपनी डिग्रियां जला देती है वो
प्रगतिशील होकर भी
पुरानी परम्परा निभा जाती है वो
उस एक चेहरे के पीछे
हर रिश्ता निभा जाती है वो
हिम्मत बेशक टूट जाए
फिर से हंस देती है वो
पौंछ के आसूं असली चेहरे से
फिर मुखौटा सजा लेती है वो।