मेरी गुल्लक
मेरी गुल्लक
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आज भी मुझे याद है
मेरी मिट्टी की वो गुल्लक,
लाल रंग की मटके जैसी
चमकीली चटकीली गुल्लक,
एक एक रुपया बचाकर
भरती रहती थी मैं गुल्लक,
उसकी खन खन सुनने को
खूब हिलाती थी मैं गुल्लक,
एक दिन छूट गई हाथ से
टूट गई मेरी गुल्लक,
खूब रोई जी भर के
याद कर कर के गुल्लक,
यूं ही रोते रोते सो गई
सपनों में भी थी गुल्लक,
आंख खुली तो थी सिरहाने
वैसी ही एक नई गुल्लक,
फट से पापा को गले लगाया
चिपका ली मैंने खुद से गुल्लक,
इस बार पैसों के साथ
प्यार से थी भरी गुल्लक।