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Shelly Gupta

Others

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Shelly Gupta

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हॉस्टल के दिन

हॉस्टल के दिन

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हॉस्टल के दिन भी क्या दिन थे

यारों से दिन शुरू होता था

यारों से खत्म होता था

हर एक बात पे हंगामा खड़ा हुआ करता था


हर सामान सांझा, किसी एक का ना हुआ करता था

पढ़ाई की बातें बस एग्जाम में हुआ करती थी

बाकी सब बातें ही ज्यादा जरूरी हुआ करती थी

घर के खाने की याद बहुत अखरती थी


पेट भर के भी भूख नहीं मिटती थी

हर कोने में एक झुरमुट सा हुआ करता था

हंसी ठहाको से जो गुलज़ार रहा करता था

एक को पड़े डांट तो मजे सब लेते थे


भूत, ड्रामे और ना जाने क्या क्या करते थे

तब हम बेफिक्र हुआ करते थे

हाय हॉस्टल के दिन भी क्या दिन थे।


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