मुकदमेबाज जनता
मुकदमेबाज जनता
मुकदमेबाज जनता का प्रतिनिधि वचनातीत है,
वाचाल नेता का समदर्शी जातिगत इच्छाधीन है।
देश को शत्रुघन चाहिये निद्रा में चौकीदार नहीं,
भेष को परमार्थ चाहिये स्वार्थ में अतिभार नहीं।
जो चुनाव के नजदीक धर्म समाज की कह रहा है,
वह ठग समझो जो सत्ता के लिये ठग रहा है।
चुनाव के वक्त ही संविधान धर्म की बातें होती हैं,
पांच साल सत्ता में रहकर खाक मुनासिब होती है।
मिथ्या मति सब लोकतंत्र में छा गयी है,
लोकतंत्र की सुध बुध सब खो गयी है,
आहार विहार निहार हो गयी है,
विचार जनत भूमि बंजर हो गयी है।
बहुत गुण जिन गाये सो कछु नाय दै पाये,
न कछु भेदाभेद हुये न कछु वह दै पाये।
बहुत किये हो मनमानी,
अब सत्ता छोड़ दो अभिमानी,
बहुत घोटाले किये जगमाही,
कछु न्याय दिये नहीं अभिलाषी।
जब जब मिथ्या राजनीतिक प्रमाद ने सताया है,
तब तब लोकतंत्र ने एक नया विकल्प बताया है।
यह भी कोई शहंशाही है जो फितरत से बाज न आई है,
दुनिया की यही रुसवाई है हकीकत जब सामने आई है।
