मुझे तुमसे प्यार नहीं
मुझे तुमसे प्यार नहीं
"मैं तुमसे प्यार करता हूं"
इसका यकीं कैसे दिलाऊं ।
अपने दिल को चीरकर
तुम्हें कैसे मैं दिखलाऊं ।।
काश, तुमने कभी गौर से
मेरी आंखों में देखा होता ।
धन दौलत का चश्मा हटा
दिल की नजरों से देखा होता ।।
काश, कि तुमने कभी तो
मेरे दिल की धड़कन सुनी होती
केवल तुम्हारी प्रीत की
इनमें धुन सुनाई देती ।।
मैं मानता हूं कि मुझे
प्यार जताना नहीं आता है ।
झूठे वादे और कसमों का
व्यापार करना नहीं आता है ।।
हवाओं को छू के देखो
मेरी वफाएं वहां मिलेंगी ।
फिज़ाओं में जा के देखो
मेरे प्यार की सदाएं सुनाई देंगी ।।
मेरी खामोशियों को जानो
मेरी हकीकत बयां करेंगी ।
मेरी नज़रों को पहचानो
इनमें तुम ही तुम दिखोगी ।।
पर तुम भी तो चाहती हो मुझे
ये तुम्हारी मुस्कान कहती है
जो लबों पे थिरकती हुई
तुम्हारे झूठ की चुगली करती है
अपने दिल पर हाथ रखकर
क्या कह सकती हो तुम
"मुझे तुमसे प्यार नहीं है"
मेरे बिन क्या रह सकती हो।
श्री हरि

