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aazam nayyar

Abstract Others

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aazam nayyar

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मुहब्बत की लगी नजर

मुहब्बत की लगी नजर

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मुझे उससे बहुत उल्फ़त हुई है 

उसी की रोज़ अब हसरत हुई है 


बहुत भेजे उसे गुल प्यार के थे

न उसकी दूर वो नफ़रत हुई है 


रहूँ कैसे बिना उसके बताओ

उसी की मुझको अब आदत हुई है 


हुई जब से मुहब्बत है तुझी से 

नहीं दिल को यहां राहत हुई है 


नज़र आता नहीं उसके सिवा और 

नज़र मैं क़ैद वो सूरत हुई है


सताया याद ने उसकी बहुत दिल 

नहीं दिल को मगर फुरसत हुई है


बहुत जलने लगे है लोग आज़म

उसी से यार जब निस्बत हुई है



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