मतवाली
मतवाली
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मेरा खत पढ़ कर वो भरी महफ़िल रोई थी,
मेरी वफ़ा पर वो मतवाली शक किया करती थी,
अपनी गलतियों का शायद वो हिसाब ना रखा करती थी,
हर पल उसे हम याद करते थे जो पल भर में हमें भूल जाती थी,
इश्क़ तुझे भी था ये मोहब्बत एक तरफा तो ना थी,
फिर ना जाने क्यों उनके होठों पर हँसी थी,
और मेरी आंखें भीगी थी,
सारी कसमें उसने खुद तोड़ी थी,
और खुदा का वास्ता भी मुझे ही दिया करती थी,
उपर वाले की अदालत में इंसाफ की कमी ना थी,
दिल से मेरे वो बेहिसाब खेली थी,
दिल को मेरे ना जाने क्यों खिलौना समझती थी,
जाते जाते इस दिल के टुकड़े वो हजार कर गई थी,