मत्तगयंद सवैया ४
मत्तगयंद सवैया ४
राम के देश में शेष कहाँ अब नीति, अनीति, सुधर्म की बातें ।
कृष्ण न द्वापर से सुध लें जब, कौन कहे अब कर्म की बातें ।
चार दिशा बस गूँज रहीं अब अर्थ, अनर्थ,अधर्म की बातें ।
दीन व हीन, मलीन हुए मन कौन सुने सुचि मर्म की' बातें ।
