मत बांधो सीमाओं में
मत बांधो सीमाओं में


मत बांधो उसको सीमाओं में उसको स्वतंत्र ही चलना चाहिए
जीती है जो सबके लिए उसको अपने लिए भी वक्त चाहिए
उसके अपने शब्दों व भावों को जीवन में मिलेगा तब परिवेश
अब उसकी भी अपने मन के भावों की एक कहानी चाहिए
उसके सम्मुख तो उसको दिखता सभी का पूरा सुंदर भविष्य है
आज अपने भविष्य को संवारने के लिए उसे हिम्मत चाहिए
नित कंटक राहों पर चलती रहती वो सौरभ के फूल समझकर
बींधे तीक्षण शूलों से अपने लिए अब नई ज़िंदगानी चाहिए
सजग, सचेत, सबल, समर्थ, और आधुनिक युग की नारी है
उसकी भी इक पहचान है आज नहीं उसे घुंघट की कैद चाहिए
आधुनिक युग में उसे बंद पिंजरे में सोने की चिड़िया ना समझो
पंख लगे हैं उसके उसे उड़ने के लिए पूरा खुला आसमान चाहिए
ना समझो उसको पत्थर की मूर्ति अब व्यवस्था के इस संसार की
अपनी स्वतंत्र पहचान की है अधिकारी उसे वो सम्मान चाहिए।