मत आना चिड़िया
मत आना चिड़िया
मत आना चिड़िया
इस हरियाले जंगल में,
पेड़ो की डालो ने सांठ-गांठ कर रखी है
कुछ बाज़ो से।
तू है नादान
तुझको समझ नहीं है कुछ भी इन हवाओ की
अब ये बहती आकाश से पाताल की ओर
फूलो पर मत करना भरोसा
चुभ जाएंगे तेरे पंजो में।
तेरा दाना-पानी
ज़हरीला है
बादल के मन में जाने क्या हो ?
मत नहाना बरसात केे पानी में।
मत उड़ना
खुले गगन में
कुचल न दे तुझको
पर्वत उड़ रहे चारों और।
ओ चिड़िया
अब तुझ पर कोई नहीं लिखेगा कविता
कलमें सारी
बेच रखी है दिल्ली के बाज़ार में।