मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
भूमि पूजन से श्री गणेश हो गया
जन्मभूमि मंदिर का शुभ निर्माण।
अविरल आर्यों की शुभ हैं आस्था
श्रीराम प्रभु हैं जन-जन के ही प्राण।
पूरी तरह नर मर्यादा से आबद्ध है
श्री हरि विष्णु जी का यह अवतार।
पुरुषार्थ की सीख से यह परिपूर्ण है
नहीं है कुछ भी इसमें कोई चमत्कार।
जिन संबंधों की पीड़ाओं से पीड़ित हो
रहा आज रहा है सकल जगत ही चीख।
आदर्श संबंध परस्पर कैसे जाए निभाए
देती है प्रभु श्रीराम कथा हमको यह सीख।
भ्रातृ-प्रेम होता है कैसा यह रामकथा बतलाती है
धर्म हेतु पुत्र मोह करें न हमें ऐसा पाठ सिखाती है।
दंडित हों सूर्पनखा-ताड़का जो कुत्सित हो जाती है,
उस नारी का उद्धार करें जो अपमानित हो जाती है।
केवट-गुह-जटायु संग जुड़ने का ये पाठ पढ़ाती है।
ऊंच नीच का भेद करें न समता का पाठ सिखाती है,
सबसे ही निश्चय प्रीति करें हमें करना प्रेम बताती है।
सुख-दुख में समत्व भावना तो रामराज्य की थाती है,
पितृ वचन की रक्षा के हित राज्य त्याग वन गमन करें,
वनवासियों से प्रेम करें और ऋषि मुनियों को नमन करें।
हर मुश्किल का करते सामना हर हाल में ही निर्वहन करें,
संगठित करके भालू-कपि त्रिलोक विजयी का दमन करें।
सदा सज्जनों का ही संग करें, दुष्टों के अभिमान को भंग करें,
जो कोटि मुसीबत भी आएं,कभी त्याग धर्म- न कुछ अधर्म करें।
अनुराग-द्वेष वश भ्रमित न हों,सदा न्यायी बनकर ही हम कर्म करें,
मर्यादा पुरुषोत्तम से प्रेरित हो,अनुसरण करते रहें और नित धर्म करें।
सबकी निज बुद्धि की होती है अपनी सीमा
समझ विविध जन एक ही संदेश से लेते हैं।
एक ही स्रोत से अलग-अलग प्रेरणा लेकर
कोई मंगल और अमंगल भी कुछ कर लेते हैं।
राम सदा रमते हैं हर एक आर्यवीर के मन में ,
राम आर्यावर्त के हर जनमानस की नींव है।
पाॅंच-पॉंच कर्मेन्द्रिय-ज्ञानेन्द्रिय वाले तन रूपी,
दशरथ की है राम आत्मा और यथार्थ जीव है।
राम तो आत्मा है इस तन रूप वाले रथ की,
राम बिन यह अचेतन है और यह निष्प्राण है।
रामकृपा संग शिव सदा ही शुभ और सुंदर है
शुभता सुंदरता संग ही जन-जन का कल्याण है।