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Shashikant Das

Abstract Tragedy

4.5  

Shashikant Das

Abstract Tragedy

मृत्यु एक अंतिम सत्य!

मृत्यु एक अंतिम सत्य!

1 min
432


रहेगी ये व्यथा, जब तक है इस शरीर का साथ, 

मिट जाये संवेदना भरे पल जब छूट जाये जीवन का हाथ।


जब आए इस संसार में तो सँभालने के लिए दो बाह भी काफ़ी थे, 

चल दिए थे जब चार कंधों पे, सभी के आँखों में माफ़ी थे।


कमाये खूब पैसा लेकिन हमेशा रिश्तो का आभाव था, 

आज लकड़ियों के ढेर पे लेटे हैं लेकिन मुख पे एक भाव न था।


ज़िन्दगी भर खुशियाँ पाने के दौड़ की होड़ में थे, 

अंतिम क्षण में चंद साँसो के पीड़ा को समटने के जोड़ में थे।


जब आग की लपटों में सुलगने लगा इस देह का पिटारा, 

तब एहसास हुआ मानो कितना निराला था इस जीवन का शिकारा।


बची कुची अस्थि भी निर्मल जल में प्रवाह हो गयी, 

आत्मा संग जुड़े मोह और माया वह भी हवन कुंड में स्वाह हो गयी।


दोस्तों, बांध लो जी भर के जीने के धागा अपने जीवन की चौखट पे, 

जैसे दिखे सभी को तुम्हारे संग बिताये हुए हँसी मंजर शमशान घाट पे।


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