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Baman Chandra Dixit

Abstract

4  

Baman Chandra Dixit

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मरने के बाद

मरने के बाद

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पत्तों का शिकायत दर्ज आज भी

तेरे नाम,ऐ शाख! क्या जवाब दोगे?

बिछड़े तो वे तेरे ही टहनियों से

कुसूरवार कौन ,क्या हिसाब दोगे?


तुम जानते होंगे अपनी मजबूरियों को

बेबसिओं को या फिर कमज़ोरियों को।

निगाहें जिनकी तुम ही पे टिकी होती

उनकी उम्मीदों को क्या जवाब दोगे?


मत कहो मौसम पतझड़ का है ये,

ज्वाला बैशाख से झुलसा जेठ है ये।

बदलते मौसम का अंदेसा तो था तुम्हे

बेहिफाज़त वे क्यों क्या हिसाब दोगे?


सूखी हवाओं की रूखी छुअन से तुम,

रूबरू होते नित, काबिल भी हो तुम।

नाज़ुक डालीयों की मासूम कलियों का

बेआवाज़ पुकारों को क्या जवाब दोगे?


साथ छूटने का गम तुझे भी होता होगा,

ख्वाब टूटने का शितम सताता भी होगा!

मगर बिन सुनवाई के सजा ए मौत कैसी

इन बेरहम फरमानोंका क्या हिसाब दोगे?


यह ना होता अगर , आज वो होते

तेरे सर का ताज साज का आवाज़ होते

वो सैलाब ही क्या जो बर्बाद ना कर दे

इस बदइन्तेज़ामात का क्या जवाब दोगे?

मौत का जवाब क्या मातम में ही दोगे??


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