-मृग तृष्णा
-मृग तृष्णा
भ्रम में ना रहो मनुष्य,
चारों ओर मृगतृष्णा फैली मनुष्य।
जीवन यू संवर जाएगा,
यह प्रकाश स्तंभ फिर से बदल जाएगा।
तृष्णा रूप को पहचानो तुम,
वास्तविकता को पहचानो तुम।
प्रकाश स्तंभ को देख कर भटक न जाना।
तृष्णा को पहचानो तुम,
वायु की लहरें बहती है।
पृथ्वी के समांतर बहती है,
जब लक्ष्य के समीप होगे तुम,
यह तृष्णा भटकाएगी।
लक्ष्य से तुम्हें भटकाएगी।
मृग जल मे फंस ना जाना,
मृगतृष्णा से धोखा खा ना जाना।
इस मृग जलीय लहरों के
धोखे में बह ना जाना।
तृष्णा को पहचानो तुम,
तृष्णा रूप को जानो तुम।
मृगतृष्णा के भ्रम में ना आना मनुष्य।