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Vaishno Khatri

Drama

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Vaishno Khatri

Drama

मृग तृष्णा

मृग तृष्णा

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कभी न रुकेगी यह चाहत 

जिसकी करता वह तलाश

खोया-खोया उदास मन 

भीड़ में अकेला और हताश।


निज स्वतन्त्रता की ख़ातिर

रिश्तों से विलग हो गए

उलझी हुई है ज़िन्दगी

मन से मज़बूर हो गए।


उलझते ही चले गए

खुद के बुने हुए जाल में

मन है उलझन कैसे निकलें 

इस माया के जंजाल से

निज़ात पाकर मृगतृष्णा से।


ज़िन्दगी हो आसान

इसलिए समय रहते ही। 

संभल जा ओ इंसान,

संभल जा ओ इंसान।


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