मॉं वसुधा को है चमकाना
मॉं वसुधा को है चमकाना


युग-युग से स्वप्न संजोए जो
उनको है पूरे कर दिखलाना।
कर समूल नाश निर्बलता का,
माॅं वसुधा को है हमें चमकाना।
सत्पथ के ही हम बन पथिक,
सकारात्मकता भाव न छोड़ेंगे।
अव्यस्था-अन्याय-अन्यायी की,
मिल,कर बल प्रयोग पथ मोड़ेंगे।
करना है स्थापित हमको सुराज,
नहीं विध्न विनाश में शरमाना।
कर समूल नाश निर्बलता का ,
माॅं वसुधा को है हमें चमकाना।
जन जो मानवता के पोषक हैं,
अर्जित करनी उन्हें अतुल शक्ति।
जड़-चे
तन के हित करके प्रयुक्त,
सामूहिक हित, न कि वर्ग व्यक्ति।
जो स्वार्थी लोलुप या अन्यायी है,
उन्हें पथ परमार्थ का दिखलाना।
कर समूल नाश निर्बलता का ,
माॅं वसुधा को है हमें चमकाना।
खुद समझें और सबको समझाएं,
हमें सुख छोड़ खोजना है आनंद।
वसुधा का हर जन निज परिजन,
परमपिता को तो शांति ही पसंद।
जग परिवर्तित होता है अनवरत,
सुख -दुख में मिलकर मुस्काना ।
कर समूल नाश निर्बलता का ,
माॅं वसुधा को है हमें चमकाना।