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Vijay Kumar parashar "साखी"

Romance

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Romance

मोहब्ब्त

मोहब्ब्त

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मोहब्ब्त की भी क्या कोई हद होती है

मोहब्ब्त की भी क्या कोई जद होती है

इश्क़ में बहना तो सबको अच्छा लगता है

पर दरिया की लहरें क्या चंद होती है।


जिनको हो जाती है मोहब्ब्त वो जानते है,

मोहब्ब्त की न कोई जात,न कोई उम्र होती है

किसीको मिल जाता है बचपन मे प्यार,

किसी की शादी बाद मोहब्ब्त शुरू होती है।


मोहब्ब्त की भी क्या कोई हद होती है

मोहब्ब्त की भी क्या कोई जद होती है

ये तो एक पावन सा अहसास है

ख़ुदा को भी लगता है ये बेहद ख़ास है।


पर मोहब्ब्त क्या कोई कद से होती है

मोहब्ब्त में एक बेताबी सी है

लोगों को लगती मुसीबत सी है

पर मोहब्ब्त में क्या लत सी होती है।


मोहब्ब्त की भी क्या कोई हद होती है

इश्क़ की भी क्या कोई जद होती है

गम ए सुर्ख ए लाल ए दिल रहता है

मोहब्ब्त में क्या खून से बारिश होती है।


खाना-पीना सबकुछ भूल से जाते है

मोहब्ब्त में क्या यादादाश्त कमजोर होती है

मोहब्ब्त की भी क्या कोई हद होती है

मोहब्ब्त की भी क्या कोई जद होती है।


रातों को नींद नहीं आती है,

हरपल किसी की याद सताती है

मोहब्ब्त में क्या आइने से मुलाकात होती है

कोई कहता मोहब्ब्त लाजवाब है।


कोई कहता मोहब्ब्त आफ़ताब है

जिसने की उसने तो बताया की

मोहब्ब्त तो दो जिस्म में एक जान होती है

उनके तन अलग-अलग भले हो,


उनके दिल अलग-अलग भले हो

पर मोहब्ब्त में धड़कन एक ही होती है

कहते है मोहब्ब्त तो वो दरिया है

इसमें डूबने वाला तर जाता है


ऊपर रहने वालो की मोहब्ब्त बेवफा होती है

मोहब्ब्त करने वाले कहते है

मोहब्ब्त तो एक शोला है

इसे करनेवाले शबनम की बूंदे है


फ़िर भी शोले की शबनम से मुलाकात होती है

मोहब्ब्त शीशे सी नाज़ुक होती है

गर ये सच्ची है तो हीरे से ज़्यादा कठोर होती है

मोहब्ब्त सबको लगती बड़ी ही सरल है।


मोहब्ब्त करनेवाले ही जानते है,

मोहब्ब्त से बढकर दुनिया मे

कोई चीज खतरनाक नही होती है

मोहब्ब्त की भी क्या कोई हद होती है।


मोहब्ब्त की भी क्या कोई ज़द होती है

मोहब्ब्त को में क्या लिखूंगा साखी,

ये ख़ुदा के दिल के बेहद करीब होती है

चंद सांसो की जिंदगी है।


चंद अल्फ़ाज़ों की बंदगी है

पर क्या मोहब्ब्त सांस पर बन्द होती है

गर सच्ची मोहब्ब्त की है तूने साखी

मोहब्ब्त तो सांस के बाद भी चालू होती है।


जिस्म ख़ाक होने के बाद भी इबादत होती है

शायद यही वज़ह है लोग कहते हैं

मोहब्ब्त तो जिस्म से नही रूह से होती है

रूह की मोहब्ब्त को आज में तलाशता हूं।


पर क्या ये मोहब्ब्त आज सीने में दफ़न होती है।


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