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Manisha Wandhare

Abstract Romance

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Manisha Wandhare

Abstract Romance

मोहब्बत...

मोहब्बत...

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मोहब्बत की कोई उमर नहीं होती ,

ना पड़ाव और ना रुझान होता है ,

वो तो हो जाती है कब किससे ,

क्या पता किस मोड़ पे जाने अनजाने ,

चलते चलते यूं ही हो जाती है ...

वो सही हो जरूरी नहीं होती,

खामियों से भरी बेफिक्र ,

डर ना जाने ना खौफ किसी का,

ये बेखौफ पंछी होती है ,

जो उड़ान आसमानों में भरती है ...

मोहब्बत जालिम नहीं होती ,

ना जोर जबरदस्ती होती है,

और जो हट करे ,मोहब्बत नहीं होती ,

मोहब्बत बस प्यार है,

मिले ना मिले, वो बहती नदिया की धार है ...

मोहब्बत कृष्ण है राधा है ,

भक्ति प्रेम दया का सागर है ,

तितलीयों के पंखो का रंग है ,

छुँ जाये तो छोड़ दे हातो पें ,

और गुजरे बागोंसें तो ,

अंग अंग महक जायें वो सुगंध है ...

हर तरफ फिर प्यार ही प्यार है ...



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