मोहब्बत...
मोहब्बत...
मोहब्बत की कोई उमर नहीं होती ,
ना पड़ाव और ना रुझान होता है ,
वो तो हो जाती है कब किससे ,
क्या पता किस मोड़ पे जाने अनजाने ,
चलते चलते यूं ही हो जाती है ...
वो सही हो जरूरी नहीं होती,
खामियों से भरी बेफिक्र ,
डर ना जाने ना खौफ किसी का,
ये बेखौफ पंछी होती है ,
जो उड़ान आसमानों में भरती है ...
मोहब्बत जालिम नहीं होती ,
ना जोर जबरदस्ती होती है,
और जो हट करे ,मोहब्बत नहीं होती ,
मोहब्बत बस प्यार है,
मिले ना मिले, वो बहती नदिया की धार है ...
मोहब्बत कृष्ण है राधा है ,
भक्ति प्रेम दया का सागर है ,
तितलीयों के पंखो का रंग है ,
छुँ जाये तो छोड़ दे हातो पें ,
और गुजरे बागोंसें तो ,
अंग अंग महक जायें वो सुगंध है ...
हर तरफ फिर प्यार ही प्यार है ...

