मनुज बन के जिएं
मनुज बन के जिएं
विनम्रता न छोड़िए, न दीनता दिखाइए,
उदारता -क्षमा-दया, आचरण में लाइए।
आगमन का हेतु क्या?ध्यान जरा कीजिए,
बांटकर प्रसन्नता निज लक्ष्य चीन्ह लीजिए।
कार्यों से आपके किस किसका होता है भला?
प्रभाव कर्म शेष बचना है तन तो जाएगा चला।
जग में जीना चाहते तो सीखें जीने की कला,
संग खुद को जोड़ा तब तो दर्द का पता चला।
मनुजता की मांग है कि मनुज बन के ही जिएं,
स्वार्थ भाव त्याग कर सर्वहित रखें निज हिए।
हमारे सब और सबके हम भाव बस रहें लिए,
परमार्थ में लगे रहें तभी तो सत्य अर्थ में जिए।