मंथन
मंथन
What to do, not to do,
ये कैसी मुश्किल आई
इस नई कैम्पस में,
कोई तो रास्ता बताए।
ये एडमिन ब्लॉक, ये IT ब्लॉक,
ये मेडिकल ब्लॉक, ये जेनरल ब्लॉक
कोई ये तो बताए।
हॉस्टल में जाना है किधर से,
सीनियर्स से फिर मिलना है कैसे।
याद आई अपनी गांव की पाठशाला,
हुआ न करता था कोई दरवाजा।
ये तो दुनिया ही है अजब,
इसमें राजीव तू फिट होगा कब।
धीरे — धीरे से, आहिस्ते – आहिस्ते,
समझ जाएगा ये फार्मूला ,
आगे अभी तो, बहुत कुछ है,
इतने से ही क्यों डरा खड़ा है।
याद आई कुछ बातें पुरानी,
बोला जो था, मां को,
घर से जब निकला था।
देखा जो था, पिताजी के आंखों में,
बस के ऊपर चढ़ते वक्त।
बस फिर क्या था,
दिल से आई आवाज।
आगे बढ़, चलता जा,
रुके ना तू, झुके ना तू,
ऐसा ही तो सीखा है तू,
बढ़ता जा इन रास्ते पे,
बिन पग अपने डगमगाए,
मंजिल मिलेगी एक दिन तुझे,
ऐसा जैसे तूने सोचा था।
बिन फिक्र के करता जा,
आनंद मग्न हो जीता जा।