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Rajeev Kumar Srivastava

Abstract

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Rajeev Kumar Srivastava

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हंसी- कभी ना रुके

हंसी- कभी ना रुके

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यही केवल एक चीज उपलब्ध है

जिसे आप खरीद नहीं सकते

डॉक्टरों की जुबान में बोले तो

हंसना जरुरी है,

बुद्धिजीवियो की जुबान में बोले तो

पगला जाए हो का.


हंसो हंसाओ, खुशियां मनाओ,

ये जो पल जिंदगी की है,

अगले पल क्या होने वाला है

ये किसी को कहां पता है।


खुशियां मनाओ ऐसे,

जैसे कभी गम ही ना हो

गम भी आए अगले पल तो,

हांसी के आगे वो झुक जाए


चले हैं ऐसे मंजर में

आस पास केवल गम ही गम है

ढूँढने से भी ना मिले जो

वो एक पल की खुशी ही तो है


हर किसी को सब गम है

कोई न रहा इससे अछुत्ता,

कोई कहे, कोई न कहे

अंतर्मन है सबका अजूबा।


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