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Rajeev kumar Srivastava

Romance

4  

Rajeev kumar Srivastava

Romance

कल–आज–कल

कल–आज–कल

1 min
321


इन हसरत भरी निगाहों में,

खो जाने का मन करता है।

इन आंखों की मस्ती में,

डूब जाने का मन करता है।

मिले थे, चले थे, बड़े थे,

सालों पहले दो अनजाने।

लेके हाथों में हाथ,

अनजानी राहों पे,

संजोए सपने हजार।

कैसे बीत गए इतने सारे साल,

याद करता हूँ , तो जैसे,

ये है, कल परसों की ही बात।

वो अपनी नोक–झोंक,

वो तीरे–तकरार,

हर वो पल,

जैसे है अभी–अभी की ही बात।

चले थे हम दो अकेले,

संजोए सपने हजार,

कुछ हुए पूरे

कुछ अभी हैं बरकार।

ये दुनिया है बड़ी ज़ालिम,

देख कर हमे,

कभी हस्ती थी,

साथ देने को कभी न तैयार,

हमेशा ही किनारे खड़ी,

तमासा ये देखती है।

तकरार–मझधार में हम दोनो के,

माजरा बहुतेरों ने देखा है,

लेकिन कितनो को ये पता है,

अंत में हमें ही तो मिलना है।

                


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