मंजर
मंजर
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वक्त बेवक्त ना आया करो तुम
मेरे यादों के समंदर में तुम्हारे आने से
मेरे शांत समंदर में ज्वार उठ जाता है
तुम नहीं होती हो सामने मेरे उस वक्त
हर एक गुजरा हुआ मंजर आंखों में उतर आता है
बड़ी मुश्किलों से संभाला है मैंने खुद को
एक एहसान करो मुझ पर
तुम तो चले ही गए हो
अपनी यादों का वह मंजर भी ले जाओ।