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Aanart Jha

Others

3.5  

Aanart Jha

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मैंने सपने बेचे है

मैंने सपने बेचे है

1 min
312


हम बड़े हुए 

अपनी सांसे छोड़ आए 

क्या पाने की खातिर 

ना जाने क्या क्या छोड़ आए,


हजारों सपने बेचकर आया हूं 

तब मैं यह पहुंच पाया हूं,


बचपन के सुनहरे सपने को

बचपन की उन सकरी गलियों में, 

छोड़कर आया,


रोटी कमाने की दौड़ में

रास्तों मोड़कर आया हूं,


बुलाते है वो रास्ते अभी भी मुझको

ना जाने क्यों 

क्या उन रास्तों का कुछ उधार छोड़कर आया हूं,


अब कौन समझाए उन रास्तों को

की जिस शक्स को जानते हैं वो

उसको तो मै कबका कहाँ छोड़कर आया हूं,


हजारों सपने बेचे हैं खवाहिशों को जलाया है 

तब कहीं जाकर मैंने जिंदगी जीने का सामान जुटाया है।


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