मनहरण घनाक्षरी : कवि हैं तो
मनहरण घनाक्षरी : कवि हैं तो
कवि हैं तो कविता का,
मान आप ही के हाथ
लेखनी को धारदार,
तलवार लिखिए ।
प्रेम, धर्म, सत्य, नीति,
आत्मबोध या अनीति
एक-एक विंदु पर,
धारदार लिखिए ।
कर्म मर्म जान मित्र,
धर्म के समान मित्र
कर्म का समस्त विश्व,
में प्रसार लिखिए ।
दुष्ट से डरे नहीं जो,
साधु को छले नहीं जो
ऐसा सत्य लेखनी से,
बार-बार लिखिए ।।