मां
मां
बहुत कुछ लिखता हूँ,
थोड़ा छूट जाता है,
दास्तान-ए-माशूक लिखता हूं,
मां के अंचल का बिछौना छूट जाता है,
दुनिया जहां को समेट देता हूं शब्दों में,
मगर घर का एक कोना छूट जाता है,
महबूब की बांहों को लिखता हूं आराम,
मां का रोना छूट जाता है,
किसी के गेसुओं की उलझन याद है लिखा है,
मां का दिया मिट्टी का खिलौना भूल जाता हूं,
जाने कैसे अजनबी को जन्नत लिख दिया है नील,
कैसे मां का होना भूल जाता हूं।