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Nitesh 'Neel

Abstract Classics Fantasy

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Nitesh 'Neel

Abstract Classics Fantasy

हस्ती

हस्ती

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कहां मिल पाएगा सुकून, किसि को भूला देने से,

तिलमिला जाता है मन, कमरे से कुछ हटा देने से।


समंदर की लहरों से करती हो बातें जो,

कहां ठहरेगी वो कस्ती, दरिया में ला देने से।


अपने को मंजिल नही मिलती, गैर को राह बताने से,

दिया तले अंधेरा ही रहता है, इक लौ जला लेने से।


यूं ही चलते रहना नाम-ए-ज़िंदगी है 'नील,

कुछ नहीं मिलता हस्ती मिटा लेने से।


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