मन
मन
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उलझनों में घिरा मन
अगर मगर में हैरान परेशान मन
फिर भी चलता चला
जा रहा है मन।
कितना कैद रहे मन,
उड़ना है तो उड़ेगा मन
फितरत से मजबूर मन
हँसोगे तो हँसेगा मन
रोओगे तो रोएगा मन
नाचता नचाता रहा सदा मन।
आवश्यकता में तीव्रता से भागा मन
रुका तो रुका ही रह गया मन,
मन को ही नहीं समझ पाया मन।
मित्र बना जब मन का मन,
अंधेरों में जुगनू सा जगमगाया मन,
इन्द्रधनुष सा लहराया, सुकून पाया मन।