STORYMIRROR

Neha Khaire

Romance Tragedy

4  

Neha Khaire

Romance Tragedy

मन

मन

1 min
284


बह कर भी रुक गए अल्फाज़

आज फिर कुछ कह ना सके

ना तुम्हें देख कर जी सके

ना तुम्हें छोड़ मर सके।


कितनी ही तन्हा रातों में

यूं बैठे हम हो गुमराह

ना तुम से कुछ कह सके

ना अतिश पी सह सके।


शायद ही कोई सवेरा होगा

जो तुम्हारे बगैर जगा होगा

शायद ही कोई शाम

तुम्हारे खिलाफ ढली होगी।


आज फिर तुम्हें याद कर

अपने आप से कह दिया

तू मेरा नहीं, ना मैं तेरी

और यूं ही मन बहला लिया।


पर फिर भी सीमा लांघ

ख्वाहिशें याद दिलाती हैं

की ना तेरे बिन जी सके

ना तुझे छोड़ मर सके।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Neha Khaire

मन

मन

1 min read

Similar hindi poem from Romance