मन पतंग
मन पतंग
मन पतंग को उड़ जाने दो !
न रोको...प्रेम प्रसून पर इसे जाने दो।
मन ही होता चंचल,
मन ही होता है गहन,
इस मन को सरल हो जाने दो !
न रोको...प्रेम प्रसून पर इसे उड़ जाने दो।
मन है कंदराओं सा गहरा,
मन तो समुद्र जल सा ठहरा,
प्रेम निर्झर बन इसे बह जाने दो !
न रोको...प्रेम प्रसून पर इसे उड़ जाने दो।
मन ये कभी होता पाषाण सम,
कभी हो जाता नवनीत सम,
कोमल ही इसे रह जाने दो !
न रोको...प्रेम प्रसून पर इसे उड़ जाने दो।
न बांँधे से ये बँधेगा,
न रोके से ही ये रुकेगा,
कभी इसे भी अपनी कर जाने दो !
न रोको...प्रेम प्रसून पर इसे उड़ जाने दो।
प्रेम है परिष्कार जीवन का,
प्रेम ही है श्रृंगार मन का,
प्रेमाभुषण से अलंकृत इसे हो जाने दो !
न रोको...प्रेम प्रसून पर इसे उड़ जाने दो।